09 October 06 - 09:33अकसर
दुनिया से कुछ डरता था वो, सहमा-सहमा रहता था वो
जाने क्या बात थी उसमें, इतना हसीं लगता था वो
इक भूल हुई मुझ से मगर, वफ़ा ही वफ़ा करता था वो,
कह्ते कह्ते रुक जाता था, अकसर ऎसा करता था वो
जो भी कहना है वो कह दो, मुझ से यही बस कहता था वो
शौक-ए-वफ़ा में अकसर अपने हाथ दिखाया करता था वो
अकसर मुझ से बैठे-बैठे अहद निबाह का लेता था वो,
ऐ दोस्त, गजल ये पढ कर मेरी अकसर रोया करता था वो...
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